बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
अथवा
ध्रुवस्वामिनी का प्रमुख पात्र चन्द्रगुप्त क्या अपने अधिकारों के प्रति उदासीन है ? उसके अन्तर्द्वन्द्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'ध्रुवस्वामिनी' नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर -
प्रस्तुत नाटक का नायक कौन है ? यह प्रश्न विवादग्रस्त है। विद्वानों का विचार है कि इस नाटक में नायक का कोई अस्तित्व ही नहीं है क्योंकि यह नाटक नायिका प्रधान है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नाटककार का उद्देश्य चन्द्रगुप्त को नायक बनाना नहीं था वरन् ध्रुवस्वामिनी के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालना था। इसके अतिरिक्त यह भी कहा जा सकता है कि नायिका का पति नायक होता है और रामगुप्त ध्रुवस्वामिनी का पति है। अतः वह इस नाटक का नायक है, परन्तु वास्तव में यह बात नहीं है। चन्द्रगुप्त शास्त्रीय दृष्टि से इस नाटक का नायक सिद्ध होता है। इस दृष्टि से जैसाकि अभी बताया गया कि नायिका का पति नाटक का नायक होता है, रामगुप्त सच्चे अर्थों में ध्रुवस्वामिनी का पति नहीं, वह तो उसका सौदागर है, तभी शकराज से सन्धि करने में उसका सौदा कर देता है। अतः उसे उसका पति नहीं, अपितु शोषक कह सकते हैं। इस प्रकार वह नायक नहीं हो सकता। उसके विपरीत चन्द्रगुप्त को ध्रुवस्वामिनी का सच्चा पति कहा जा सकता है। अतः वही इस नाटक का नायक है।
इसके अतिरिक्त नाट्यशास्त्र के अनुसार नायक में त्याग, उदारता, शीलता, वीरता, कर्त्तव्यपरायणता, धैर्य आदि जैसे गुणों का होना आवश्यक है। ये सभी गुण चंद्रगुप्त के चरित्र में विद्यमान हैं। अतः इस दृष्टि से भी वह इस नाटक का नायक है। साथ ही नाटक का नायक फलभोक्ता होता है। इस दृष्टि से भी चंद्रगुप्त ही नायक ठहरता है क्योंकि उसे फल के रूप में राज्य तथा ध्रुवस्वामिनी की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त नाटक के आरम्भ से अन्त तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी न किसी रूप में चन्द्रगुप्त दर्शकों के समक्ष बना रहता है। वह नाटक में संघर्ष का प्रणेता है। इस प्रकार सभी दृष्टियों से इस नाटक का नायक चन्द्रगुप्त ही ठहरता है। यदि ध्रुवस्वामिनी और चन्द्रगुप्त को एक-दूसरे का पूरक भी मान लिया जाय तो भी चन्द्रगुप्त का नायकत्व समाप्त नहीं होता है।
चन्द्रगुप्त समुद्रगुप्त का पुत्र तथा रामगुप्त का छोटा भाई है। समुद्रगुप्त ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने राज्य का उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त को घोषित किया था और ध्रुवस्वामिनी के साथ वाग्दान सम्पन्न करा दिया था, परन्तु समुद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् राज्य के अमात्य (मंत्री) शिखरस्वामी ने राज्य की बागडोर अपने हाथ में रखने के लिए मूर्ख, विलासी, क्लीव, आयोग्य और कायर रामगुप्त को राजसिंहासन पर बैठा दिया। रामगुप्त ने सम्राट होते हीं ध्रुवस्वामिनी की इच्छा के विरुद्ध उससे विवाह कर लिया। इसके पश्चात् वह ध्रुवस्वामिनी को शकराज के यहाँ उपहार रूप में भेजने को तैयार हो जाता है। इससे चन्द्रगुप्त का पौरुषत्व भड़कता है। वह ध्रुवस्वामिनी के साथ शक- दुर्ग में जाकर शकराज को समाप्त कर देता है और अन्त में रामगुप्त भी समाप्त हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि चन्द्रगुप्त मगध का सम्राट बनता है और ध्रुवस्वामिनी महादेवी का पद ग्रहण करती है।
चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषताएँ
चन्द्रगुप्त इस नाटक का नायक और सर्वश्रेष्ठ पुरुष पात्र है। उसके चरित्र में एक आदर्श युवक के विभिन्न गुण विद्यमान हैं। उनका संक्षेप में विवेचन इस प्रकार है-
1. त्यागी - चन्द्रगुप्त के चरित्र में आरम्भ में त्याग की महान् भावना के दर्शन होते हैं। उसे स्वर्गीय सम्राट समुद्रगुप्त ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था, परन्तु फिर भी गुप्तकाल की परम्परा की रक्षा के हेतु अपने हाथ में आये राज्य को अपने बड़े भाई को सौंप देता है। इसके साथ ही उसके त्याग की भावना वहाँ भी है जब वह ध्रुवस्वामिनी को रामगुप्त की पत्नी बनने देता है। यदि वह चाहता तो रामगुप्त को न राज्य देता और न ध्रुवस्वामिनी को, परन्तु यह उसकी त्यागमयी भावना का प्रतीक है।
2. प्रेम - चन्द्रगुप्त एक ऐसा युवक है जो अन्तर में प्रेमी की चिंगारी छिपाये हुए हैं। ध्रुवस्वामिनी से अनन्य प्रेम करता है। ध्रुवस्वामिनी ने उसके हृदय के अंधकारपूर्ण नीद में प्रथम किरण के समान अज्ञात भाव से अपना मधुर आलोक डाल दिया था। वह अपने जीवन के इस आलोक को किसी मूल्य पर समाप्त नहीं होने देना चाहता है। इसीलिए जब ध्रुवस्वामिनी आत्महत्या करने को तैयार होती है तो वह तुरन्त वहाँ पहुँचता है और उसे समझाते हुए कहता है “यदि जीवन विश्व की सम्पत्ति है। प्रमाद से, क्षणिक आवेश से या दुःख की कठिनाइयों से उसे नष्ट करना तो ठीक नहीं।" चन्द्रगुप्त के प्रेम में स्वार्थ या वासना की गंध नहीं है। वह अपनी प्रेयसी ध्रुवस्वामिनी के लिए अपने जीवन को संकट में डालकर शक- दुर्ग में जाता है और उसके सम्मान की रक्षा करता है।
3. कुल की मर्यादा का रक्षक - चन्द्रगुप्त अपने कुल - गौरव का रक्षक है। गुप्त का गौरव और मर्यादा ही उसका जीवन है। इसके लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए वह सदैव तैयार रहता है। वह गुप्त वंश का अपमान होता हुआ नहीं देख सकता है। इसीलिए जब ध्रुवस्वामिनी का शकराज को उपहार में देने की बात आती है, तो वह क्रोध से भभक उठता है। वह किसी मूल्य पर भी अपने कुल की मर्यादा को नष्ट नहीं होने देता है।
4. वीर तथा साहसी - चन्द्रगुप्त के चरित्र का महान् गुण यह है कि वह एक वीर, साहसी तथा पराक्रमी नवयुवक है। वीर और साहसी व्यक्ति की पहिचान यह है कि वह कहने की अपेक्षा कर्म में विश्वास करता है। इसी प्रकार चन्द्रगुप्त कहता कम है, परन्तु उसके अधिक कर दिखाता है। वह अकेला ही निडर होकर शकराज के दुर्ग में ध्रुवस्वामिनी के साथ चला जाता है। वहाँ पर वह अपना स्पष्ट परिचय देते हुए शकराज से कहता है, “मैं हूँ चन्द्रगुप्त, तुम्हारा काल। मैं आया हूँ, तुम्हारी वीरता की परीक्षा लेने। सावधान।" वह शकराज को मौत के घाट उतार देता है। वीर व्यक्ति कभी भी असहाय नारी पर अत्याचार होता हुआ नहीं देख सकता है। चन्द्रगुप्त एक सच्चा वीर है। जब रामगुप्त ध्रुवस्वामिनी को बन्दी बनाने का आदेश देता है तो चन्द्रगुप्त अपनी लौह श्रृंखलाओं को तोड़कर अपनी वीरता का परिचय देता है। वह अपने साहस तथा वीरता के द्वारा ही ध्रुवस्वामिनी को प्रत्येक संकट से रक्षा करता है।
5. कर्त्तव्य परायण - चन्द्रगुप्त का चरित्र कर्त्तव्य पालन की महान गाथा है। वह केवल वीर ही नहीं, अपितु कर्त्तव्य-परायण व्यक्ति है। उसे अपने कर्त्तव्य पालन में आनन्द और सुख का अनुभव होता है। शक- दुर्ग में पहुँचकर ध्रुवस्वामिनी चन्द्रगुप्त के जीवन को संकटमय देखकर लौट जाने को कहती है, परन्तु चन्द्रगुप्त अपने कर्त्तव्य पर अडिग है। वह स्पष्ट कहता है “ तीखे वचनों से मर्माहत करके आज कोई मुझे इस मृत्यु पक्ष से विमुख नहीं कर सकता। मैं केवल अपना कर्त्तव्य करूँ, इसी में मुझे सुख है।" उसे कर्त्तव्य करते हुए विश्राम नहीं है। वह शक दुर्ग को छोड़ने की इच्छा व्यक्त करते हुए मन्दाकिनी से कहता है. “विश्राम ! मुझे कहाँ विश्राम ? मैं अभी यहाँ से प्रस्थान करने वाला हूँ। मेरा कर्तव्य पूरा हो चुका। अब यहाँ मेरा ठहरना अच्छा नहीं।" इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चन्द्रगुप्त का जीवन कर्त्तव्यों की सतत् कहानी है।
6. विनय और शील की मूर्ति - चन्द्रगुप्त की कर्तव्य परायणता की तो चिरंतन गाथा है ही, परन्तु उसमें विनय और शील का गुण भी अपूर्व रूप में विद्यमान है। जब उसे रामगुप्त बन्दी बना लेता है तो वह किसी प्रकार का प्रतिरोध नहीं करता है, परन्तु उसके विनय भाव पर कायरता का आवरण दिखाई नहीं देता है। इसीलिए वह कहता है “नहीं, यह शील का कपट, मोह और प्रवंचना है। मैं जो हूँ वही हूँ, वही तो नहीं स्पष्ट रूप से प्रकट कर सका। यह कैसी विडम्बना है। विनय के आवरण में मेरी कायरता अपने को कब तक छिपा सकेगी ?" इस प्रकार वह विनयी और शीलवान होते हुए भी अपने अधिकार की रक्षा में विश्वास करता है।
7. विवेकशील - चन्द्रगुप्त एक विवेकशील नवयुवक है। वह अपने बुद्धि के कौशल से कठिन कार्यों को भी सरल बना देता है। ध्रुवस्वामिनी के साथ शक दुर्ग में प्रवेश कर पाना उसकी बुद्धि की कुशलता का सबल प्रमाण है। वह प्रत्येक कार्य को करने के पूर्व अपनी बौद्धिक कसौटी पर अवश्य कसता है। इसलिए उसे अपने प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त है।
8. नियतिवादी - चन्द्रगुप्त कर्त्तव्य-परायण और विवेकशील होते हुए भी नियतिवादी है। वह ध्रुवस्वामिनी का रामगुप्त के साथ विवाह नियति (भाग्य) का ही परिणाम मानता है। इसीलिए स्पष्ट रूप से कहता है - "विधान की स्याही का एक बिन्दु गिरकर भाग्य लिपि पर कालिमा चढ़ा देता है। मैं आज यह स्वीकार करने में भी संकुचित हो रहा है कि ध्रुवदेवी मेरी है। परन्तु भाग्यवाद या नियतिवाद चन्द्रगुप्त को निष्क्रिय या अकर्मण्य नहीं बनाता है। वह उसे कर्मलोक का मार्ग दिखाता है।
9. अन्तर्द्वद्व की प्रधानता - चंद्रगुप्त के चरित्र में ध्रुवस्वामिनी, कोमा और रामगुप्त के चरित्र की भाँति अन्तर्द्वद्व की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है। उसके हृदय में प्रेम और कर्त्तव्य के मध्य द्वंद्व चलता है यह उसके चरित्र को महान् बनाने में सहायक है। उसके हृदय के द्वंद्व का एक उदाहरण देखिए "वह मेरी है, उसे मैंने आरम्भ से ही अपनी सम्पूर्ण भावना से प्यार किया है। मेरे हृदय के गहन अन्तःस्थल से निकली हुई यह मूक स्वीकृति आज बोल रही है।"
10. उदार तथा गम्भीर - चन्द्रगुप्त के चरित्र में उदारता और गम्भीरता जैसे गुणों का समावेश भी दृष्टिगोचर होता है। वह एक उदार हृदय का युवक है। वह बिना किसी कारण किसी को सताना पाप समझता है, तथा दूसरों की सहायता उसके जीवन का परम लक्ष्य है। साथ ही इसके व्यक्तित्व में उच्छृंखलता के स्थान पर गम्भीरता के दर्शन होते हैं।
11. दृढ़ता - चन्द्रगुप्त के चरित्र में दृढ़ता का अपूर्व गुण देखने को मिलता है। वैसे वह विनयशीलता के कारण ऐसा प्रतीत होता है, जैसे उसमें दृढ़ता नहीं है, परन्तु वह एक बार जो निर्णय कर लेता है, उस पर सदैव दृढ़ रहने का प्रयत्न करता है। उसके चरित्र की दृढ़ता इस नाटक में दो अवसरों पर स्पष्ट रूप से दिखायी देती है, जैसे स्त्री वेष में शकराज के यहाँ जाना और लौह- बेड़ियों को तोड़ने के बाद न्याय - पालन करने में। इस प्रकार शिथिल विचारों वाला व्यक्ति ऐसे निर्णय नहीं ले सकता है। ऐसे दृढ़ निर्णय करना तो चन्द्रगुप्त जैसे दृढ़ चरित्र वाले नायक की शक्ति में ही आता है।
निष्कर्ष - उपर्युक्त विवेचन से यही निष्कर्ष निकलता है कि चन्द्रगुप्त ही इस नाटक का श्रेयस्कर पुरुष पात्र है। वही फल का भोक्ता है। अतः चन्द्रगुप्त ही इस नाटक का धीरोदात्त नायक है। उसके चरित्र का स्वाभाविक रूप से विकास दिखाया गया है। वह अत्यंत संयत और कठिन अवसरों में एक वीर, निर्भीक, कर्त्तव्यपरायण, विनयी, शीलवान और गम्भीर नवयुवक दिखायी पड़ता है।
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- प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
- प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
- प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
- प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
- प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
- अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
- प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
- प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
- प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
- प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
- प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
- प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
- अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
- अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
- प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
- प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
- प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
- प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
- अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
- प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
- अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
- अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
- प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
- अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
- प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
- अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
- अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
- प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
- अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
- अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
- अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।